Wednesday, March 4, 2009

क्या इनका कोई अर्थ नहीं 'धर्मवीर भारती'

ये शामें, सब की शामें ...
जिनमें मैंने घबरा कर तुमको याद किया
जिनमें प्यासी सीपी-सा भटका विकल हिया
जाने किस आने वाले की प्रत्याशा में
ये शामें
क्या इनका कोई अर्थ नहीं ?
वे लमहें
वे सूनेपन के लमहें
जब मैनें अपनी परछाई से बातें की
दुख से वे सारी वीणाएं फेकीं
जिनमें अब कोई भी स्वर न रहे
वे लमहें
क्या इनका कोई अर्थ नहीं ?
वे घड़ियां, वे बेहद भारी-भारी घड़ियां
जब मुझको फिर एहसास हुआ
अर्पित होने के अतिरिक्त कोई राह नहीं
जब मैंने झुककर फिर माथे से पंथ छुआ
फिर बीनी गत-पाग-नूपुर की मणियां
वे घड़ियां
क्या इनका कोई अर्थ नहीं ?
ये घड़ियां, ये शामें, ये लमहें
जो मन पर कोहरे से जमे रहे
निर्मित होने के क्रम में
क्या इनका कोई अर्थ नहीं ?
जाने क्यों कोई मुझसे कहता
मन में कुछ ऐसा भी रहता
जिसको छू लेने वाली हर पीड़ा
जीवन में फिर जाती व्यर्थ नहीं
अर्पित है पूजा के फूलों-सा जिसका मन
अनजाने दुख कर जाता उसका परिमार्जन
अपने से बाहर की व्यापक सच्चाई को
नत-मस्तक होकर वह कर लेता सहज ग्रहण
वे सब बन जाते पूजा गीतों की कड़ियां
यह पीड़ा, यह कुण्ठा, ये शामें, ये घड़ियां
इनमें से क्या है
जिनका कोई अर्थ नहीं !
कुछ भी तो व्यर्थ नहीं !

2 comments:


  1. यह तो बहुत ही सराहनीय प्रयास है,
    आज ही देखा, अब नित्य आकर पिछड़ा हुआ कोर्स पूरा करना पड़ेगा !

    परन्तु, एक ख़लिश लेकर जा रहा हूँ..
    ईश्वर करे कि, आप जीवनपर्यन्त विवेकानन्द जी के अनुगामी बनें रहें..
    पर प्रोफ़ाइल में अपनी छवि के बदले स्वामी जी का उपयोग किये जाना उनकी गरिमा को कम कर रहा है ।
    इसे मेरे संयत विरोध के रूप में दर्ज़ कर लें ।

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  2. धन्यवाद मित्र,
    काश आपके जैसा ही देश के पचास प्रतिशत जन सोच सकते ।
    आपकी भावनाओं को आहत न करते हुये,
    मैं यह संकेत दे आया था, कि महान युगदृष्टा की फोटो अन्यंत्र स्थापित की जा सकती है,
    पूज्य और प्रातः स्मरणीय तो वह सदैव रहेंगे !

    ReplyDelete

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