साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
चल रहा है तारकों कादल गगन में गीत गाताचल रहा आकाश भी हैशून्य में भ्रमता-भ्रमाता
पाँव के नीचे पड़ीअचला नहीं, यह चंचला है
एक कण भी, एक क्षण भीएक थल पर टिक न पाता
शक्तियाँ गति की तुझेसब ओर से घेरे हुए हैस्थान से अपने तुझेटलना पड़ेगा ही, मुसाफिर!
साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
थे जहाँ पर गर्त पैरोंको ज़माना ही पड़ा थापत्थरों से पाँव केछाले छिलाना ही पड़ा था
घास मखमल-सी जहाँ थीमन गया था लोट सहसा
थी घनी छाया जहाँ परतन जुड़ाना ही पड़ा था
पग परीक्षा, पग प्रलोभनज़ोर-कमज़ोरी भरा तूइस तरफ डटना उधरढलना पड़ेगा ही, मुसाफिर
साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
शूल कुछ ऐसे, पगो मेंचेतना की स्फूर्ति भरतेतेज़ चलने को विवशकरते, हमेशा जबकि गड़ते
शुक्रिया उनका कि वेपथ को रहे प्रेरक बनाए
किन्तु कुछ ऐसे कि रुकनेके लिए मजबूर करते
और जो उत्साह कादेते कलेजा चीर, ऐसेकंटकों का दल तुझेदलना पड़ेगा ही, मुसाफिर
साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
सूर्य ने हँसना भुलाया,चंद्रमा ने मुस्कुरानाऔर भूली यामिनी भीतारिकाओं को जगाना
एक झोंके ने बुझायाहाथ का भी दीप लेकिन
मत बना इसको पथिक तूबैठ जाने का बहाना
एक कोने में हृदय केआग तेरे जग रही है,देखने को मग तुझेजलना पड़ेगा ही, मुसाफिर
साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
वह कठिन पथ और कबउसकी मुसीबत भूलती हैसाँस उसकी याद करकेभी अभी तक फूलती है
यह मनुज की वीरता हैया कि उसकी बेहयाई
साथ ही आशा सुखों कास्वप्न लेकर झूलती है
सत्य सुधियाँ, झूठ शायदस्वप्न, पर चलना अगर हैझूठ से सच को तुझेछलना पड़ेगा ही, मुसाफिर
साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हम घूम चुके बस्ती-वन में / इब्ने इंशा
हम घूम चुके बस्ती-वन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम म...
-
प्रार्थना मत कर, मत कर, मत कर! युद्धक्षेत्र में दिखला भुजबल, रहकर अविजित, अविचल प्रतिपल, मनुज-पराजय के स्मारक है मठ, मस्जिद, गिरजाघर! प्राथ...
-
ab saup diya is jeevan ka sab bhar tumhare haatho me sab bhar tumhare haatho me hai jeet tumhare haatho me aur har tumhare haatho me aur haa...
-
साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों कादल गगन में गीत गाताचल रहा आकाश भी हैशून्य में भ्रमता-भ्रमाता पाँव के नीचे पड़ीअचल...
स्वागत है हिन्दी ब्लॉग जगत् में,
ReplyDeleteखूब लिखें, अच्छा लिखें - शुभकामनाएँ.
स्वागत, स्वागत, स्वागतम, शुभागमन...
ReplyDeleteपढ़ने वाले पढ़ ही लेंगे, प्रसन्न होंगे.
--अरविंद कुमार
samantrakosh@gmail.comm
स्वागत, स्वागत, स्वागतम, शुभागमन...
ReplyDeleteपढ़ने वाले पढ़ ही लेंगे, प्रसन्न होंगे.
--अरविंद कुमार
samantarkosh@gmail.com
साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर!
ReplyDeleteमन के कहे अनुसार करने से हमे क्षणिक प्रसन्नता प्राप्त होती हैं, स्थायी प्रसन्नता पाने के लिये आत्मा के कहे अनुसार चलना चाहिये।