ओ मेरे जीवन
तू अखरोट की पत्तियों-सा झड़
तुम्हारी टहनियों के बीच से
धूप पहुँचे जीवन की
ठिठुरन तक
तू अंगेठे में
लोहधान-सा तप
हाँडी की खुद-बुद महक
फैले घर भर में
तू बरसात की अंधेरी रात में
जुगनू भर
आलोक बन
तू किसी की नींद में
रंगीन-सा सपना बन
तू आततायी के चेहरे पर
घाव का पक्का निशान बन
उसकी नाक पर
बार-बार बैठ मक्खी की तरह
तू बसंत की समृति-सा
बंदनवार रस्सी के बट बीच
बरुस के फूल-सी
अपनी रंगत बनाए रख
तू ड्योढ़ी से अपने नाम की पुकार
की इंतजार मत कर
न ही अपने को सिद्ध करने के लिए
अंधेरी ग़ुफा के सामने
ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला अपना नाम
तुम्हारे नाम की प्रतिध्वनियाँ
तुम्हारे अकेले पड़ जाने के दर्द को
और गहरा कर देंगी
तू बस बुझने से पहले
जल की पावन धारा में
विसर्जित दीप-सा बह।
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
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