बदल गए हैं चाँद नक्षत्र, तारे
पृथ्वी सिकुड़ कर
टेबल पर दुबक गई है
घट रहा है सब कुछ
मेरी आँखों के सामने
दीवारों को लाँघ कर हर चीख़
पहुँच रही है मेरे कानों तक
दर्द बदल गए हैं
बदल गए हैं नाख़ूनों के रंग
तलवार की धार बहुत तेज़ है
पृथ्वी को काट गई है
दो हिस्सों में
सपने सब बदल गए हैं
सिमट गए हैं वे
पश्चिमी आकाश के किसी कोने में
धुआँ रसोई से निकल कर
अंतरिक्ष में फैल गया है
साँसों की गति बदल रही है
मेरी बावली उतावली सदी बदल रही है
बदल गया है नदियों का जल
जंगल का आकार
तटों का रंग
और उसी छोटी-सी देह में
आदमी बदल गया है
बदल गए हैं
अपने को धोखा देने के उसके ढंग।
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
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