यहाँ
मेरे अंदर बसती है एक दुनिया
ओर-छोर नहीं दिखता जिसका
बादलों की तरह उमड़ती है आकाश में
असंख्य चित्र बनाती और गिराती चली जाती है
मैं आकाश जैसे चित्रपट पर
बादल जैसी कल्पनाओं की
अठखेलियाँ देखता रहता हूँ
जहाँ मोरपंख हैं
हरियाली है
तितलियां हैं
पारदर्शी जल के नीचे
रंग-बिरंगी मछलियाँ हैं
वहाँ
मेरे बाहर बसती है एक दुनिया
पत्थर सी ठोस है
रेत-सी फैली है
धुएँ–सी आँखों को मलती है
रोटी जितनी गोल है
काली गुफ़ा सी मोहक है
जहाँ झरोखे जितना आकाश है
कापी के पन्नों को बाच दबे
तितली के पँखों जैसे सपने हैं
मैं अंदर और बाहर की दुनिया को
अक्षर-अक्षर नापता
दुर्गम चोटी की
अर्थहीन यात्रा पर निकलता हूँ
चोटी से जब पुकारता हूँ
तो मेरे शब्द निर्जन जंगल में गूँजकर
मेरे पास लौट आते हैं
रंगीन बादल
मेरे लिए बुनते हैं एक पैराशूट
जिसे थाम भरता हूँ एक अर्थहीन उड़ान
नदी किनारे की किसी अज्ञात चरागाह में
धराशायी होने को।
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हम घूम चुके बस्ती-वन में / इब्ने इंशा
हम घूम चुके बस्ती-वन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम म...
-
हम घूम चुके बस्ती-वन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम म...
-
प्रार्थना मत कर, मत कर, मत कर! युद्धक्षेत्र में दिखला भुजबल, रहकर अविजित, अविचल प्रतिपल, मनुज-पराजय के स्मारक है मठ, मस्जिद, गिरजाघर! प्राथ...
-
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना इक नार पे जान को हार गया मशहूर है उस का अफ़साना उस नार में ऐसा रूप न था जिस रूप से...
No comments:
Post a Comment