Tuesday, February 17, 2009

अहसास का घर 'कन्हैयालाल नंदन'

हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।

मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।

जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।

जिंदगी चाहिए मुझको मानी* भरी,
चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।

लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।

जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,
तो कहीं एक तो चश्मेतर** चाहिए।
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*- सार्थक
**-नम आँख

1 comment:

  1. नंदन जी की एक और कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद. नंदन जी का पूरा नाम कन्हैया लाल तिवारी 'नंदन'है.

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