हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।
मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।
जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।
जिंदगी चाहिए मुझको मानी* भरी,
चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।
लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।
जब मुसीबत पड़े और भारी पड़े,
तो कहीं एक तो चश्मेतर** चाहिए।
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*- सार्थक
**-नम आँख
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
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हम घूम चुके बस्ती-वन में / इब्ने इंशा
हम घूम चुके बस्ती-वन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम म...
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नंदन जी की एक और कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद. नंदन जी का पूरा नाम कन्हैया लाल तिवारी 'नंदन'है.
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