Tuesday, February 17, 2009

सृजन का दर्द 'कन्हैयालाल नंदन'

अजब सी छटपटाहट,
घुटन,कसकन ,है असह पीङा
समझ लो
साधना की अवधि पूरी है

अरे घबरा न मन
चुपचाप सहता जा
सृजन में दर्द का होना जरूरी है

1 comment:

  1. 'अरे घबरा न मन
    चुपचाप सहता जा
    सृजन में दर्द का होना जरूरी है '
    -सृजन की पीड़ा का सच्चा बखान.

    ReplyDelete

हम घूम चुके बस्ती-वन में / इब्ने इंशा

हम घूम चुके बस्ती-वन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम म...