Monday, January 3, 2011

जापर दीनानाथ ढरै 'सूरदास'

जापर दीनानाथ ढरै।

सोई कुलीन, बड़ो सुन्दर सिइ, जिहिं पर कृपा करै॥

राजा कौन बड़ो रावन तें, गर्वहिं गर्व गरै।

कौन विभीषन रंक निसाचर, हरि हंसि छत्र धरै॥

रंकव कौन सुदामाहू तें, आपु समान करै।

अधम कौन है अजामील तें, जम तहं जात डरै॥

कौन बिरक्त अधिक नारद तें, निसि दिन भ्रमत फिरै।

अधिक कुरूप कौन कुबिजा तें, हरि पति पाइ तरै॥

अधिक सुरूप कौन सीता तें, जनम वियोग भरै।

जोगी कौन बड़ो संकर तें, ताकों काम छरै॥

यह गति मति जानै नहिं कोऊ, किहिं रस रसिक ढरै।

सूरदास, भगवन्त भजन बिनु, फिरि-फिरि जठर जरै॥

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