Monday, January 3, 2011

ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी 'सूरदास'

ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी।

सब नदियाँ जल भरि-भरि रहियाँ सागर केहि बिध खारी॥

उज्ज्वल पंख दिये बगुला को कोयल केहि गुन कारी॥

सुन्दर नयन मृगा को दीन्हे बन-बन फिरत उजारी॥

मूरख-मूरख राजे कीन्हे पंडित फिरत भिखारी॥

सूर श्याम मिलने की आसा छिन-छिन बीतत भारी॥

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