Saturday, December 25, 2010

और कुछ देर यूं ही शोर मचाये रखिये 'शीन काफ़ निज़ाम'

और कुछ देर यूं ही शोर मचाये रखिये
आस्मां है तो उसे सर पे उठाये रखिये

उंगलिया गर नही उट्ठें, तो न उट्ठें लेकिन
कम से कम उस की तरफ आंख उठाये रखिये

बारिषें आती है तूफान गुजर जाते है
कोहसारों की तरह पांव जमाये रखिये

खिड़कियां रात को छोड़ा न करें आप खुलीं
घर की है बात तो फिर घर में छिपाये रखिये

अब तो अक्सर नजर आ जाता है दिल आंखों में
मैं न कहता था कि पानी है दबाये रखिये

कौन जाने कि वो कब राह इधर भूल पड़े
अपनी उम्मीद की शम्ओं को जलाये रखिये

कब से दरवाजों की दहलीज तरसती है ‘निजाम’
कब तलक गाल को कोहनी पे टिकाये रखिये

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