Tuesday, July 7, 2009

मानुस हौं तो वही 'रसखान'


मानुस हौं तो वही रसखान,
बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो,
चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को,
जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि,
कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥

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