Wednesday, March 4, 2009

सृजन का शब्द 'धर्मवीर भारती'

आरम्भ में केवल शब्द था
किन्तु उसकी सार्थकता थी श्रुति बनने में
कि वह किसी से कहा जाय
मौन को टूटना अनिवार्य था
शब्द का कहा जाना था
ताकि प्रलय का अराजक तिमिर
व्यवस्थित उजियाले में
रूपान्तरित हो

ताकि रेगिस्तान
गुलाबों की क्यारी बन जाय
शब्द का कहा जाना अनिवार्य था।
आदम की पसलियों के घाव से
इवा के मुक्त अस्तित्व की प्रतिष्ठा के लिए
शब्द को कहा जाना था

चूँकि सत्य सदा सत्य है
आज भी अनिवार्य है
अतः आज के लिए भी शब्द है
और उसे कहा जाना अनिवार्य है।

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