Tuesday, February 24, 2009

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार 'निदा फ़ाज़ली'

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार

लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम

सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप

सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

1 comment:

  1. 'चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
    मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान '
    - बिलकुल सही कहा निदा फाजली ने. उत्कृष्ट लेखन को अपने ब्लॉग के माध्यम से पढ़वाने के लिए साधुवाद.

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