Monday, February 2, 2009

दूर क्षितिज तक 'इसाक अश्क'

दूर क्षितिज तक
टेसू वन में बिना धुएँ की
आग लगाए हैं।

हवा
हवा में पंख तौल-
इतराती है,
रात
रात भर जाने क्या-क्या
गाती है,

रस की
प्रलय-बाढ में जैसे
सब डूबे-उतराए हैं।

पत्ते
नृत्य-कथा का
मंचन करते हैं,

धूल
शशि पर फूल
बाँह में भरते हैं,

मौसम ही
यह नहीं दृष्टि भर
पाहन तक मदिराए हैं।

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