देखिये-तो
किस कदर फिर
आम-अमियों बौर आए।
धूप
पीली चिट्ठियाँ
घर आँगनों में,
डाल
हँसती-गुनगुनाती है-
वनों में,
पास कलियों
फूल-गंधों के
सिमट सब छोर आए।
बंदिशें
टूटीं प्रणय के-
रंग बदले,
उम्र चढती
जन्दगी के-
ढंग बदले,
ठेठ घर में
घुस हृदय के
रूप-रस के चोर आए।
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
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ab saup diya is jeevan ka sab bhar tumhare haatho me sab bhar tumhare haatho me hai jeet tumhare haatho me aur har tumhare haatho me aur haa...
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साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों कादल गगन में गीत गाताचल रहा आकाश भी हैशून्य में भ्रमता-भ्रमाता पाँव के नीचे पड़ीअचल...
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
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