जी करता है, कुछ लिखूं,
लिखता ही चला जाऊं,
जीवन एक अबूझ पहेली,
इसी बारी सुलझाऊं !
कैसे सृजन हुआ सृष्टि का,
कैसे बने सितारें ?
कैसे बने चाँद और सूरज,
कैसे अगणित तारें ?
किसने सोचा, किसने गूंथा
साँसों का ताना बाना ?
किसका निश्चय, चले निरंतर
यूँ आना, यूँ जाना ?
क्या यह सब कुछ, स्वयं नियंत्रित
या कोई और चलाता ?
कहते जिसको परम नियंता,
क्या कोई विश्व विधाता ?
मन, बुद्धि, चित, अहम् - सभी जड़,
चेतन किस विधि मिल जाता ?
निज -निज से नित-नित हो विस्मित,
सुख दुःख भ्रम निपजाता
यह संगम तो क्षण भर का उपक्रम,
फ़िर गुण - गुण में मिल जाता
तब क्या चेतन, विलग हो जड़ से
भ्रम से निवृत्ति पाता ?
या हो मोहित, उसी छद्म में
मुक्ति की आस; अकुलाता ?
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।। अर्थात- हम सब ए...
-
प्रार्थना मत कर, मत कर, मत कर! युद्धक्षेत्र में दिखला भुजबल, रहकर अविजित, अविचल प्रतिपल, मनुज-पराजय के स्मारक है मठ, मस्जिद, गिरजाघर! प्राथ...
-
जी करता है, कुछ लिखूं, लिखता ही चला जाऊं, जीवन एक अबूझ पहेली, इसी बारी सुलझाऊं ! कैसे सृजन हुआ सृष्टि का, कैसे बने सितारें ? कैसे बने चाँद औ...
-
साँस चलती है तुझेचलना पड़ेगा ही मुसाफिर! चल रहा है तारकों कादल गगन में गीत गाताचल रहा आकाश भी हैशून्य में भ्रमता-भ्रमाता पाँव के नीचे पड़ीअचल...
An excellent work , a poem which has brilliant poetry and philosophical questions.
ReplyDeleteदार्शनिक चिंतन लिए एक सुंदर रचना के लिए साधुवाद.
ReplyDeletebahut bhadiya
ReplyDeleteHaa bahut badiya... badora bha kane bhi aapri likhiyonri rachnaye thi, mane ve dikhai thi.. ve bhi blog mate dol do ...
ReplyDeleteAmar Singh