एक ऐसा गीत गाना चाहता हूँ मैं
ख़ुशी हो या ग़म, बस मुस्कुराना चाहता हूँ मैं !
दोस्तो से दोस्ती तो हर कोई निभाता है
दुश्मनो को भी अपना दोस्त बनाना चाहता हूँ मैं !
जो हम उड़े उँचाई पर अकेले तो क्या नया किया,
साथ में हर किसी के पंख फैलाना चाहता हूँ मैं !
वो सोचते हैं की मैं अकेला हूँ उनके बिना,
तन्हाईया साथ में मेरे इतना बताना चाहता हूँ मैं !
ये खुदा तमन्ना बस इतनी सी है क़बूल करना,
मुस्कुराते हुए ही तेरे पास आना चाहता हूँ मैं !
बस ख़ुशी हो हर पल और महके ये गुलशन सारा अभी ,
हर किसी के ग़म को अपना बनाना चाहता हूँ मैं !!
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
Friday, April 25, 2008
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हम घूम चुके बस्ती-वन में / इब्ने इंशा
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