Saturday, December 25, 2010

सूरज जी 'कृष्ण शलभ'

सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो
लगता तुमको नींद न आती
और न कोई काम तुम्हें
ज़रा नहीं भाता क्या मेरा
बिस्तर पर आराम तुम्हें
ख़ुद तो जल्दी उठते ही हो‚ मुझे उठाते हो
सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो!!

कब सोते हो‚ कब उठ जाते
कहाँ नहाते-धोते हो
तुम तैयार बताओ हमको
कैसे झटपट होते हो
लाते नहीं टिफ़िन‚
क्या खाना खा कर आते हो !
सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो!!

रविवार आफ़िस बन्द रहता
मंगल को बाज़ार भी
कभी-कभी छुट्टी कर लेता
पापा का अख़बार भी
ये क्या बात‚ तुम्हीं बस छुट्टी नहीं मनाते हो !
सूरज जी तुम इतनी जल्दी क्यों आ जाते हो !!

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