कोयल के कानों में कह दी
कुछ बात रस भरी
सुधियों में फूल गई आम्र-मंजरी।
हरियाले पत्तों की पहने क़मीज़
अंग-अंग फूल रहे सृजन के बीज
तारों की दुनिया में
प्रियतम को छोड़
फुनगी पर बैठी है रात की परी।
सूरज ने चैता के डाकिए के हाथ
भेजी है प्यार की चटकिल सौगात
लज्जा के आँचल से
यौवन को ढाँप
धरती को देखती पसार अंजुरी
सुधियों में फूल गई आम्र-मंजरी।
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
Sunday, February 14, 2010
आम्र-मंजरी 'अश्वघोष'
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हम घूम चुके बस्ती-वन में / इब्ने इंशा
हम घूम चुके बस्ती-वन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम म...
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ab saup diya is jeevan ka sab bhar tumhare haatho me sab bhar tumhare haatho me hai jeet tumhare haatho me aur har tumhare haatho me aur haa...
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जी करता है, कुछ लिखूं, लिखता ही चला जाऊं, जीवन एक अबूझ पहेली, इसी बारी सुलझाऊं ! कैसे सृजन हुआ सृष्टि का, कैसे बने सितारें ? कैसे बने चाँद औ...
इस रम्य रचना की प्रस्तुति का आभार ।
ReplyDeleteइन पंक्तियों ने तो बाँध लिया पूर्णतः -
"सूरज ने चैता के डाकिए के हाथ
भेजी है प्यार की चटकिल सौगात
लज्जा के आँचल से
यौवन को ढाँप
धरती को देखती पसार अंजुरी
सुधियों में फूल गई आम्र-मंजरी।"