जब से मन घनश्याम हो गया
तन वृंदावन धाम हो गया
राधा के मुख से जो निकला
वही कृष्ण का नाम हो गया
तन की तपन मिली है तन को
जख़्मों में आराम हो गया
प्रीति रही बदनाम सदा से
लेकिन मेरा नाम हो गया
वे कालिख पीकर भी उजले
वक्त स्वयं बदनाम हो गया
तुम ने जिस क्षण छुआ दृष्टि से
सारा जग अभिराम हो गया
अल्प विराम मृत्यु को जग ने
समझा पूर्ण विराम हो गया
सब गुलाम राजा बन बैठे
राजा मगर गुलाम हो गया
तुम ने आँखों से क्या ढाली
'यायावर' ख़ैयाम हो गया
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
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हम घूम चुके बस्ती-वन में / इब्ने इंशा
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