Friday, June 5, 2009

प्रेम का अनगढ़ शिल्प 'योगेंद्र कृष्णा'

काटने से पहले
लकड़हारे ने पूछा
उसकी अंतिम इच्छा क्या है
वृद्ध पेड़ ने कहा
जीवन भर मैंने
किसी से कुछ मांगा है क्या
कि आज
बर्बर होते इस समय में
मरने के पहले
अपने लिए कुछ मांगूं
लेकिन
अगर संभव हो
तो मुझे गिरने से बचा लेना
आसपास बनी झोपिड़यों पर
श्मशान में
किसी की चिता सजा देना
पर मेरी लकड़ियों को
हवनकुंड की आग से बचा लेना
बचा लेना मुझे
आतंकवादियों के हाथ से
किसी अनर्गल कर्मकांड से
मेरी शाख पर बने
बया के उस घोंसले को
तो जरूर बचा लेना
युगल प्रेमियों ने
खींच दी हैं मेरे खुरदरे तन पर
कुछ आड़ी तिरछी रेखाएं
बड़ी उम्मीद से
मेरी बाहों में लिपटी हैं
कुछ कोमल लताएं भी
हो सके तो बचा लेना
इस उम्मीद को
प्रेम की अनगढ़ इस भाषा
इस शिल्प को
मैंने अबतक
बचाए रखा है इन्हें
प्रचंड हवाओं
बारिश और तपिश से
नैसर्गिक मेरा नाता है इनसे
लेकिन डरता हूं तुमसे
आदमी हो
कर दोगे एक साथ
कई-कई हत्याएं
कई-कई हिंसाएं
कई-कई आतंक
और पता भी नहीं होगा तुम्हें
तुम तो
किसी के इशारे पर
काट रहे होगे
सिर्फ एक पेड़...

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