चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
Sunday, January 4, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
हम घूम चुके बस्ती-वन में / इब्ने इंशा
हम घूम चुके बस्ती-वन में इक आस का फाँस लिए मन में कोई साजन हो, कोई प्यारा हो कोई दीपक हो, कोई तारा हो जब जीवन-रात अंधेरी हो इक बार कहो तुम म...
-
प्रार्थना मत कर, मत कर, मत कर! युद्धक्षेत्र में दिखला भुजबल, रहकर अविजित, अविचल प्रतिपल, मनुज-पराजय के स्मारक है मठ, मस्जिद, गिरजाघर! प्राथ...
-
ab saup diya is jeevan ka sab bhar tumhare haatho me sab bhar tumhare haatho me hai jeet tumhare haatho me aur har tumhare haatho me aur haa...
-
जी करता है, कुछ लिखूं, लिखता ही चला जाऊं, जीवन एक अबूझ पहेली, इसी बारी सुलझाऊं ! कैसे सृजन हुआ सृष्टि का, कैसे बने सितारें ? कैसे बने चाँद औ...
No comments:
Post a Comment