Monday, January 12, 2009

चिडिया और चुरूंगुन "हरिवंशराय बच्‍चन"

छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात,
और सुनी जो पत्‍ते हिलमिल,
करते हैं आपस में बात;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

डाली से डाली पर पहुँचा,
देखी कलियाँ, देखे फूल,
ऊपर उठकर फुनगी जानी,
नीचे झूककर जाना मूल;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

कच्‍चे-पक्‍के फल पहचाने,
खए और गिराए काट,
खने-गाने के सब साथी,
देख रहे हैं मेरी बाट;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

उस तरू से इस तरू पर आता,
जाता हूँ धरती की ओर,
दाना कोई कहीं पड़ा हो
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

मैं नीले अज्ञात गगन की
सुनता हूँ अनिवार पुकार
कोइ अंदर से कहता है
उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?

'आज सुफल हैं तेरे डैने,
आज सुफल है तेरी काया'

2 comments:

  1. मैं नीले अज्ञात गगन की
    सुनता हूँ अनिवार पुकार
    कोइ अंदर से कहता है
    उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
    माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?

    'आज सुफल हैं तेरे डैने,
    आज सुफल है तेरी काया'

    बच्चन जी की ये पंक्तियाँ सही मार्गदर्शन करती हैं.

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  2. मैं नीले अज्ञात गगन की
    सुनता हूँ अनिवार पुकार
    कोइ अंदर से कहता है
    उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
    माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?


    U r doing a great job , bachachan ji padh kar achchha laga, aasha hai bachachan ji ki aur kavitaye padhane ko milegi .....

    Badhi...

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