गैर क्या जानिये क्यों मुझको बुरा कहते हैं
आप कहते हैं जो ऐसा तो बज़ा कहते हैं
वाकई तेरे इस अन्दाज को क्या कहते हैं
ना वफ़ा कहते हैं जिस को ना ज़फ़ा कहते हें
हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश
हम तो इन्सान को दुनिया का खुदा कहते हैं
तेरी सूरत नजर आई तेरी सूरत से अलग
हुस्न को अहल-ए-नजर हुस्न नुमां कहते हैं
शिकवा-ए-हिज़्र करें भी तो करें किस दिल से
हम खुद अपने को भी अपने से जुदा कहते हैं
तेरी रूदाद-ए-सितम का है बयान नामुमकिन
फायदा क्या है मगर यूं जो जरा कहते हैं
लोग जो कुछ भी कहें तेरी सितमकोशी को
हम तो इन बातों अच्छा ना बुरा कहते हैं
औरों का तजुरबा जो कुछ हो मगर हम तो फ़िराक
तल्खी-ए-ज़ीस्त को जीने का मजा कहते हैं
No more noisy, loud words from me---such is my master's will. Henceforth I deal in whispers.
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