Thursday, May 22, 2008

लीक पर वे चलें "सर्वेश्वरदयाल सक्सेना"

लीक पर वे चलें
जिनकेचरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से
बनेऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।

साक्षी हों राह रोके
खड़ेपीले बाँस के झुरमुट,
कि उनमें गा रही है जो
हवाउसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं ।

शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ;
गर्व से आकाश थामे
खड़ेताड़ के ये पेड़,
हिलती क्षितिज की झालरें;
झूमती हर डाल पर
बैठीफलों से
मारतीखिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में,
कहीं नीचेशुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
उसी के ही सहारें हैं ।

लीक पर वें चलें
जिनकेचरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से
बनेऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।

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